Monday, November 28, 2011

गिटार

याद है मुझे;
उस दिन झील के किनारे,
नई धुन बनाई थी मैंने
और सुनाई थी तुमको,
सबसे पहले,
हमेशा की तरह |
मेरे काँधे पे सर रख के कहा था तुमने,
"मुझे भी गिटार सिखाना तुम" |

कोई भूली बात जैसे |
किसी अधूरी कहानी की तरह
ये भी छूट गयी थी पीछे |
जैसे कोई भूली बात |

बिना पलक झपके,
जाने क्या देखती थीं तुम
मेरी उँगलियों में,
जब मैं गिटार बजाता था |
मैं तो खो जाता था किसी और जहाँ में |
मेरी उँगलियों से शायद
तुम भी अपना जहाँ बुन लेती थीं |
फिर बोलती थीं मेरे काँधे पे सर रख के,
"मुझे भी गिटार सिखाना तुम" |