राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' की अद्वितीय रचना जहाँ वह उस वृत्तान्त का वर्णन करते है जिसमे भगवन दुर्योधन की सभा में युद्ध टालने का अंतिम प्रयास करने जाते हैं. परन्तु दुर्योधन के दुस्साहस से आहात हो वह सभा को अपना विहंगम रूप दिखाते हैं.
दिनकर की लेखनी द्वारा पुनः इस कविता में हिंदी साहित्य का विशुद्ध रूप में उभर के आता है.
वर्षों तक वन में घूम घूम,
बाधा विघ्नों को चूम चूम,
सह धूप घाम पानी पत्थर
पांडव आये कुछ और निखर.
बाधा विघ्नों को चूम चूम,
सह धूप घाम पानी पत्थर
पांडव आये कुछ और निखर.
सौभाग्य न सब दिन होता है,
देखें आगे क्या होता है.
देखें आगे क्या होता है.
मैत्री की राह दिखाने को
सब को सुमार्ग पर लाने को
दुर्योधन को समझाने को
भीषण विध्वंस बचाने को
भगवान हस्तिनापुर आए
पांडव का संदेशा लाये.
सब को सुमार्ग पर लाने को
दुर्योधन को समझाने को
भीषण विध्वंस बचाने को
भगवान हस्तिनापुर आए
पांडव का संदेशा लाये.
दो न्याय अगर तो आधा दो
पर इसमें भी यदि बाधा हो
तो दे दो केवल पाँच ग्राम
रखो अपनी धरती तमाम.
पर इसमें भी यदि बाधा हो
तो दे दो केवल पाँच ग्राम
रखो अपनी धरती तमाम.
हम वहीँ खुशी से खायेंगे
परिजन पे असी ना उठाएंगे.
परिजन पे असी ना उठाएंगे.
दुर्योधन वह भी दे ना सका.
आशीष समाज की न ले सका.
उलटे हरि को बाँधने चला
जो था असाध्य साधने चला.
आशीष समाज की न ले सका.
उलटे हरि को बाँधने चला
जो था असाध्य साधने चला.
जब नाश मनुज पर छाता है
पहले विवेक मर जाता है.
पहले विवेक मर जाता है.