पहले तो क्षमा इसलिए कि एक पुरानी कृति प्रस्तुत की है।कुछ ज्यादा ही पुरानी शायद, आठ साल पहले (जून २००४) में तब लिखी थी जब मेरी आयु लगभग सोलह होगी।
यूहीं कल कुछ 'बिखरे पन्ने' टटोलते हुए इस से टकरा गया तो लगा कि अगर आज भी ऐसा कुछ लिखता तो तो करीब- करीब यूँ ही होता । बस तो प्रस्तुत कर दिया यहाँ जो मैं ज़िन्दगी के 'सफ़र' के बारे में सोचता था जीवन के उन कुछ सबसे अनमोल वर्षों में -
सोचता हूँ,
यूँ ही कभी बैठे हुए
झील के किनारे,
लहरों पर नाचती चाँदनी को देखकर,
आते - जाते सावन के बादलों से
पूछता हूँ -
क्या किसी के लिए रुकेगा ये जीवन?
जीवन एक युद्ध है, संघर्ष है;
कोई अड़चन नहीं,
अभी पार होता सहर्ष है ।
मिलेंगे लाखों मीत,
अभी लम्बा बहुत 'सफ़र' है ।
कुछ दिल को छुएंगे,
कुछ दिल में रहेंगे,
कुछ दिल की बात हमसे कहेंगे,
घंटों हम उन्हें सोचेंगे,
उन्ही संग रोयेंगे,
उन्ही सँग हसेंगे ।
पर हो सकता है और शायद होगा यही ,
कई रूठेंगे,
कई औरों के हाथ छूटेंगे,
साथ छूटेंगे ।
विरक्ति से शायद
विचलित भी होगा मन,
पर शायद, हर जन
कर दे मुझ में कोई परिवर्तन ।
पर क्या किसी के लिए रुकेगा ये जीवन?
लक्ष्य हैं और कई निश्चय भी हैं मेरे,
आज रात है
कल झील पर होंगे सवेरे ।
कुछ जायेंगे,
तो कई साथ भी निभाएंगे,
कुछ बन जायेंगे मेरे ही मन का दर्पण,
वो ताक़त होंगे मेरे,
वो ही मेरा धन ।
इसलिए शायद,
न कभी रुका है -
न किसी के लिए रुकेगा ये जीवन ।
हाँ, जो छूटे हैं वो हमे तड़पाएंगे,
बहुत याद आयेंगे,
ऐसी ही किसी रात
बार - बार सतायेंगे,
हम भी उन्हें भूले नहीं भूल पायेंगे।
पर हर नए दिन के साथ
देखेंगे नए स्वप्न;
असीमित ऊर्जा से जियेंगे ये जीवन;
हाँ, कभी नहीं, किसी के लिए नहीं
रुकता ये जीवन ।
न ही किसी के लिए रुकेगा ये जीवन ।
Sundar rachana hai!
ReplyDeletevery nice!!
ReplyDeleteBahut khoob...I am going to use your rachnaye for up coming 'kavi-sammelan" in seattle.will give you update....keep it up...we feel proud to read them...God bless you....
ReplyDeletebas di aapki blessings hi hain aur kya :)
Deleteबहुत सुंदर लिखा है ऋषि...
ReplyDelete१६ साल की छोटी उम्र में बहुत गहरी सोच थी आपके भीतर....
निरंतर लिखते रहिये...
अनु
dhnyawaad Anu ji...!!
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