प्यार तो प्यार होता है। विद्वानों को समझ नही आया, पंडितों ने हाथ खड़े कर दिए।प्यार तो प्यार होता है। माँ के लिए भी होता है महबूब के लिए भी। प्यार की कोई भाषा, कोई समझ नही होती और कविता का कोई नज़रिया नही होता। बस तो प्यार को एक नए नज़रिए से परोसने की कोशिश की है इधर..
तेरे इश्क़ से सराबोर
सांसें - मन, मेरा जान-ओ-ज़हन;
ऐ माशूख़ वतन, मेरे माशूख वतन।
नीली - काली- फैली
रात की स्याही पे,
कुछ जो बिखरे हैं
तारों के वो छीटें हैं।
धुंधलाये से लगे सारे
तेरी आँखों के नूर से,
चाशनी भी लगी फीकी
बस तेरे होंठ मीठे हैं ।
भीगी - काली जुल्फों से
छिटका जो बूँद - बूँद पानी;
कुछ सांसें उधार लीं मैने
कुछ और जीने की ठानी ।
तेरी मोहब्बत की सलाईयाँ लेकर
कुछ ख्वाब बुने ऊनी ।
तेरी शामों में कूची डुबोकर रंग दीं
अपनी शामें भी महरूनी ।
अपनी शामें भी महरूनी ।
तेरे इश्क़ से सराबोर
सांसें - मन, मेरा जान-ओ-ज़हन;
ऐ माशूख़ वतन, मेरे माशूख वतन।