Monday, November 28, 2011

गिटार

याद है मुझे;
उस दिन झील के किनारे,
नई धुन बनाई थी मैंने
और सुनाई थी तुमको,
सबसे पहले,
हमेशा की तरह |
मेरे काँधे पे सर रख के कहा था तुमने,
"मुझे भी गिटार सिखाना तुम" |

कोई भूली बात जैसे |
किसी अधूरी कहानी की तरह
ये भी छूट गयी थी पीछे |
जैसे कोई भूली बात |

बिना पलक झपके,
जाने क्या देखती थीं तुम
मेरी उँगलियों में,
जब मैं गिटार बजाता था |
मैं तो खो जाता था किसी और जहाँ में |
मेरी उँगलियों से शायद
तुम भी अपना जहाँ बुन लेती थीं |
फिर बोलती थीं मेरे काँधे पे सर रख के,
"मुझे भी गिटार सिखाना तुम" |



और मैं बोलता,
"ये तो यूँ ही है और वक़्त भी कहाँ है" |
फिर कुछ रुक के ये भी कहा हर दफा मैंने --
"मैं सिखाऊंगा तुम्हे गिटार -- ज़रूर सिखाऊंगा";
और तुम मुस्कुरा के सो जाती थी;
जैसे नहीं निकलना चाहती कभी
मेरी उँगलियों से बुने उस जहाँ से |


वक़्त कम था -- सच में |
पता नहीं कब
रंग - बिरंगी गोलियां आ गयीं अपने जहाँ में,
और उन्ही पे रहने लगीं तुम |

पीले पड़े चेहरे से,
रोम-रोम में बसे दर्द से लड़के,
दवाओं से बोझिल आँखों से भी,
जाने क्या देखती थी तुम
मेरी उँगलियों में;
जब मैं गिटार बजाता था |
हर रात बजाता था मैं,
कोई धुन या कोई गाना |
जिसमे खो के सो जाती थीं तुम;
शाँत सी, सुकून भरी, हर रात |
वहीँ कोने में टिका के गिटार
मैं कहता था तुमसे --
"मैं सिखाऊंगा तुम्हे गिटार -- ज़रूर सिखाऊंगा";
और सो जाता था तुमसे सटके |

एक सुबह उठी नहीं तुम |
शाँत सी, सुकून भरी, सोती सी रही |
मेरी उँगलियों से बुने जहाँ में
सदा के लिए ठहर गयीं तुम |
मेरी धुनों में बसके खोती सी रही |

आज भी वहीं कोने में टिका रखा है गिटार |
धुल से सना हुआ;
जंग भी लग गयी है तारों पे;
मकड़ी के जालों से पकड़ा हुआ
आज भी वहीँ कोने में टिका रखा है गिटार |

जिसे कभी सिखा नहीं पाया मैं तुम्हे |

4 comments:

  1. gr8 wrk bhai...
    indeed loved ur creation...
    i thnk its smewhat inspired by ur roommate..
    wo room me sangeet barasta tha...

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  2. luvd ur creations s well dost..
    read a few..read them all soon...!!

    Bhai wo to sangeet ka mandir tha..;)

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  3. beautiful....
    just loved ur writing style...

    hope u write more often..

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