मेरे घर में पुराने ज़माने की रील वाली एक कैसेट थी "आनँद -सफ़र" - साइड A में 'सफ़र' और साइड B में 'आनँद' । इसमें राजेश खन्ना की इन दो बेहेतरीन फिल्मो के गाने और हर गाने के बीच इन्ही फिल्मों से अद्भुत डायलोग। ये मेरी पहली मुलाकात थी राजेश खन्ना से। फिर जैसे बड़ा हुआ कुछ फिल्में देखीं और उनकी उस नशीली मुस्कान के जादू से जैसे कोई नहीं बचा मैं भी नहीं बच पाया । और 'आनँद' तो किसी भी भाषा, श्रेणी, समय में मेरी सर्वाधिक पसंदीदा दो-तीन फिल्मो में एक है।
इस महानायक की मृत्यु के बाद सचमुच यूँ लगा के कुछ तो कम हो गया इस धरती से। तो मेरी श्रद्धांजलि इस नशीली मुस्कान वाले मोहब्बत के अमर सौदागर को ...
कुछ लोग वक़्त की रेत पर
पैरों के ऐसे निशान छोड़ जाते हैं
जो कभी नहीं मिटते ।
'कभी अलविदा न कहना',
ये तुमने ही कहा था ना ?
और कल तुमने ही विदा ले ली !!
पीछे छोड़ गए तुम सब कुछ;
वो हँसी, वो आँखें;
वो बातें, वो यादें;
वो गीत, वो धुन;
और हाँ ! वो पैरों के निशाँ,
जो कभी नहीं मिटेंगे ।
कितने ही लाख दिल तुम्हारी बातों पे धड़के थे;
कितनी अँधेरी ज़िन्दगियों में रौशनी के दो पल छिड़के थे।
तुम्हारी मदभरी मुस्कान में कई करोड़ डूबे थे;
कई करोड़ चेहरे तुम्हारे साथ हँसे थे।
मेरा यकीन करो !
और कई-कई करोड़ आँखें नम हैं आज
तुम्हारे जाने के बाद।
पर रहोगे सदा तुम-
जब तक ये वक़्त है;
इन्ही अनेकानेक
आँखों की चमक बनकर,
दिलों की धड़क बनकर,
चेहरे की हंसी, ग़ज़ल बनकर।
क्यूंकि पता है हमें -
'आनँद मरा नहीं,
आनँद कभी मरते नहीं'।
चार पंक्तियाँ उस मनचले आशिक के नाम जो 'ये शाम मस्तानी' में 'रूप तेरा मस्ताना' गुनगुनाते हुए अपने 'सपनो की रानी' को ढूँढता फिरता था...
धरती पे जैसे तारों में ध्रुव थे तुम,
सोचता हूँ,
क्या अब आकाश में भी दो ध्रुव होंगे ?
अब तक अप्सराओं सँग रास रचता रहा,
दिल्लगी करता रहा;
वो पुराना ध्रुव तारा।
उसे अब कोई नया रोज़गार ढूंढ ही लेना चहिए ।।