बारिश अपने पूरे श़बाब पर है और मेरा ख़ूबसूरत शहर पूरी जवानी पे। और ये भी तो नहीं हो सकता की बरसात यूँ ही बीत जाये और उसपे कुछ न लिखें। बस तो मेरी कोशिश इस खूबसूरत मौसम को अपने अंदाज़ में सहेजने की....
मेरे शहर की रौनक ही कुछ और होती है।
जैसे कोई ख़ूबसूरत, जवान लड़की,
सज - सँवर गई है -
सर्दियों की मुँह दिखाई के लिए।
पश्मीने की हरी शॉल -
जिसपे दरवाज़े-मंदिर-मस्जिदों की मीनारें -
ज़रदोज़ी सी लगती हैं-
ओढ़ रक्खी है उसने।
पहन रक्खा है झीलों का हार,
जिसके बीच में वह बड़ी झील
चमकती है कोहिनूर की तरह।
बेशकीमती है यह नगीना,
बेशकीमती है यह बूँदें, यह बारिश।
कुछ और होती है मनमानी करने की फिदरत।
खुद ही उग जाते है पेड़-पौधे;
गाहे-बगाहे, बिना किसी से पूछे
दीवारों के बीच से।
छतों पे पड़ जाती है सीलन
और काई भी जम जाती है।
बिजली के तारों पे लटकी वो बूँदें,
पीछे की स्ट्रीट लाइट में
पुखराज की सी लगती हैं।
नीचे गिरती हैं ये बूँदें,
झिलमिल - झिलमिल - झिलमिलाती हैं,
और बह जाती हैं
वो कागज़ की कश्तियाँ लिए
और उनके साथ लिए वो बचपन।
प्लास्टिक के, सीमेंट के, टीन के
शेडों पे, खपरैलों पे
बजती हैं ये बूँदें।
कई धुन, कई तालों में;
दिन रात बजते हैं ये साज़
और यूँ ही ख़यालों तक उतर जाती है
मेरे शहर की बारिश।
जिस्म के साथ
रूह को भी तरबतर कर देती है
मेरे शहर की बारिश ।
वो बारिश जिसमे
मेरे शहर की रौनक ही कुछ और होती है।
Aapke shahar ka shabab hamesha bana rahe!
ReplyDeleteLagta hai aapke dwara likhi gayee is sundar rachana ko aapke hee blog pe mai pahle padh chukee hun!
ReplyDeleteoh haan! Yahan to mera comment bhee hai!
ReplyDeleteअतिसुंदर दृश्य का आभास कराते हुए,लाजवाब रचना |बहुत खूब लिखा है आपने....
ReplyDeleteमेरा ब्लॉग आपके इंतजार में.समय मिले तो बस एक झलक-"मन के कोने से..."
आभार..|
Aapki barish men thandak bhi hai, kashish bhi, aur nami bhi. Is barish ka intzaar jab-tab rahega.
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ReplyDeleteसुंदर शाब्दिक चित्रण
ReplyDeleteसुन्दर और सार्थक सृजन , बधाई.
मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" पर आप सादर आमंत्रित हैं.