बारिश अपने पूरे श़बाब पर है और मेरा ख़ूबसूरत शहर पूरी जवानी पे। और ये भी तो नहीं हो सकता की बरसात यूँ ही बीत जाये और उसपे कुछ न लिखें। बस तो मेरी कोशिश इस खूबसूरत मौसम को अपने अंदाज़ में सहेजने की....
मेरे शहर की रौनक ही कुछ और होती है।
जैसे कोई ख़ूबसूरत, जवान लड़की,
सज - सँवर गई है -
सर्दियों की मुँह दिखाई के लिए।
पश्मीने की हरी शॉल -
जिसपे दरवाज़े-मंदिर-मस्जिदों की मीनारें -
ज़रदोज़ी सी लगती हैं-
ओढ़ रक्खी है उसने।
पहन रक्खा है झीलों का हार,
जिसके बीच में वह बड़ी झील
चमकती है कोहिनूर की तरह।
बेशकीमती है यह नगीना,
बेशकीमती है यह बूँदें, यह बारिश।
जिसमे मेरे शहर की रौनक ही कुछ और होती है।