कुछ बातें, कुछ रिश्ते, कुछ बौछारें जो हमें इस क़दर तर-बतर कर देती हैं कि समझ नहीं आता, वो कहाँ और हम कहाँ। कोई फर्क नहीं कर सकता। वो हमसे हैं या हम उनसे कोई समझ नही सकता....
गई रात बहुत गहरी नींद
सोयीं थी तुम ।
जैसे सावन की भीगती हुई,
कजरारी सी शुद्ध सुबह;
वैसी ही निश्छल - साफ - शुद्ध,
सोयीं थी तुम ।
मैं अपनी नींद को मनाता रहा,
मत आना, कहीं ये दृश्य न टूटे ।
और तेरी नींद भी थपकाता रहा,
रह जाना, कहीं ये दृश्य न टूटे ।
फिर एक ख़याल आया
और मेरी नींद उड़ गयी ।
गई रात बहुत गहरी नींद
सोयीं थी तुम ।
जैसे सावन की भीगती हुई,
कजरारी सी शुद्ध सुबह;
वैसी ही निश्छल - साफ - शुद्ध,
सोयीं थी तुम ।
मैं अपनी नींद को मनाता रहा,
मत आना, कहीं ये दृश्य न टूटे ।
और तेरी नींद भी थपकाता रहा,
रह जाना, कहीं ये दृश्य न टूटे ।
फिर एक ख़याल आया
और मेरी नींद उड़ गयी ।