कुछ बातें, कुछ रिश्ते, कुछ बौछारें जो हमें इस क़दर तर-बतर कर देती हैं कि समझ नहीं आता, वो कहाँ और हम कहाँ। कोई फर्क नहीं कर सकता। वो हमसे हैं या हम उनसे कोई समझ नही सकता....
गई रात बहुत गहरी नींद
सोयीं थी तुम ।
जैसे सावन की भीगती हुई,
कजरारी सी शुद्ध सुबह;
वैसी ही निश्छल - साफ - शुद्ध,
सोयीं थी तुम ।
मैं अपनी नींद को मनाता रहा,
मत आना, कहीं ये दृश्य न टूटे ।
और तेरी नींद भी थपकाता रहा,
रह जाना, कहीं ये दृश्य न टूटे ।
फिर एक ख़याल आया
और मेरी नींद उड़ गयी ।
दूर हो गयी हो तुम,
मैं अकेला हूँ
और ये दृश्य कहीं नहीं ।
छिन गयीं या छीन लिया तुम्हे,
मैं अकेला हूँ
और ये दृश्य कभी नहीं ।
घबराया मैं
और अपना दिल ढांक लिया तुम्हारे हाथ से;
सोचा कि तुम यहीं हो ।
उनीन्दी करवट लेकर
तूने भी मेरे काँधे पे अपना सर रख दिया;
हाँ - हाँ, तुम यहीं हो ।
कुछ आराम आया मुझे;
तुम्हारी खुशबू से मिला कुछ और सुकूँ ;
आहिस्ता - ना जाने कब
फिर मेरी भी आँखें बंद हो गयीं ।
सुबह जब आँख खुली -
तुम वहीँ थीं,
काँधे में - दिल में -मुझ में ।
पर थोडा भीगा था मैं ।
तुम्हारी ही खुश्बू से महक रहा था
मेरा हर रोम ।
जैसे रात भर रिसी थीं तुम
और मैं सोखता गया था तुम्हे पूरी रात ।
मैं तुझमे था और तू मुझमें थी ;
नम था मैं,
और मुझमे ये तेरी ही 'नमी' थी ।
फिर तेरी ओर मुड़ा मैं,
वह दृश्य वहीँ सम्हाल रखा था तुमने;
एकदम साबुत रखा था वह ।
और मुझमे भरोसा था -
कि कोई नही छीन सकता तुम्हे मुझसे।
यह दृश्य कभी नही टूटेगा ।
गई रात बहुत गहरी नींद
सोयीं थी तुम ।
जैसे सावन की भीगती हुई,
कजरारी सी शुद्ध सुबह;
वैसी ही निश्छल - साफ - शुद्ध,
सोयीं थी तुम ।
मैं अपनी नींद को मनाता रहा,
मत आना, कहीं ये दृश्य न टूटे ।
और तेरी नींद भी थपकाता रहा,
रह जाना, कहीं ये दृश्य न टूटे ।
फिर एक ख़याल आया
और मेरी नींद उड़ गयी ।
दूर हो गयी हो तुम,
मैं अकेला हूँ
और ये दृश्य कहीं नहीं ।
छिन गयीं या छीन लिया तुम्हे,
मैं अकेला हूँ
और ये दृश्य कभी नहीं ।
घबराया मैं
और अपना दिल ढांक लिया तुम्हारे हाथ से;
सोचा कि तुम यहीं हो ।
उनीन्दी करवट लेकर
तूने भी मेरे काँधे पे अपना सर रख दिया;
हाँ - हाँ, तुम यहीं हो ।
कुछ आराम आया मुझे;
तुम्हारी खुशबू से मिला कुछ और सुकूँ ;
आहिस्ता - ना जाने कब
फिर मेरी भी आँखें बंद हो गयीं ।
सुबह जब आँख खुली -
तुम वहीँ थीं,
काँधे में - दिल में -मुझ में ।
पर थोडा भीगा था मैं ।
तुम्हारी ही खुश्बू से महक रहा था
मेरा हर रोम ।
जैसे रात भर रिसी थीं तुम
और मैं सोखता गया था तुम्हे पूरी रात ।
मैं तुझमे था और तू मुझमें थी ;
नम था मैं,
और मुझमे ये तेरी ही 'नमी' थी ।
फिर तेरी ओर मुड़ा मैं,
वह दृश्य वहीँ सम्हाल रखा था तुमने;
एकदम साबुत रखा था वह ।
और मुझमे भरोसा था -
कि कोई नही छीन सकता तुम्हे मुझसे।
यह दृश्य कभी नही टूटेगा ।
:))))))))))
ReplyDelete:*:*:*......koi nai chin sakta...ye sath kabhi nai chutega..ye drishya kabhi nai tutega...:)))