कुछ बातें, कुछ यादें ऐसी होती हैं जो सदा आपके साथ रहती हैं | भूली, कड़वी या गलती समझ के आप लाख कोशिश करो इनसे पीछा छुड़ाने कि ये दब जाती हैं अन्दर लेकिन मौका पाते ही फ़ौरन सतह पे आ जाती हैं क्यूंकि ये आपकी शख्सियत का एक अभिन्न हिस्सा हैं | और वक़्त के साथ तो फिदरत बदलती है शख्सियत नही |
हाँ लेकिन वक़्त बदलता है | वक़्त जो किसी का सगा नही, इन यादों का भी नही...
के अब भी जज़्बात मचलेंगे |
पर सब कुछ जाना - पहचाना सा लगा,
कल जब मेरा गाँव आया |
शीशा नीचे हुआ - जैसे खुद ही;
कुछ धूल और खुशबू भर गयी कार में |
वो महक भी थी जानी - पहचानी सी |
"ड्राईवर, गाड़ी रोको"
बोला मैं और उतरा नीचे |
चारों और थी वही खुशबू;
बरसों से जो महक रही थी मेरे बदन में |
बरसों से जो महक रही थी म्रेरे ज़हन में |
लगा यूँ,
के अरसों बाद भूला कोई
लौट के घर आ गया |
घर आ गया मैं, ऐ दोस्त;
वो बाजरे के, सरसों के खेत भी वहीँ हैं,
जहाँ हम घंटों-घंटों खो जाते थे |
वो पगडण्डी भी वहीँ मिली,
जिसपे डंडी से हम टायर चलते थे |
हाई-वे के किनारे ही
मिल गया वो 'दरख़्त' भी;
जिसपे तुम चढ़ जाते थे
फल चुराने के लिए, ऐ दोस्त !
और मैं चौकन्ना देखता रहता था,
कि कोई देख ना ले बूढ़े काका के घर से |
घर तो टूट गया है अब
और ये हाई-वे बन गया है |
माँ कि मार खाके भी
हर दिन हम इस दरख़्त पे आते थे |
क्यूंकि इससे मीठे फल कहीं नही;
और ये भी लदा मिलता था फलों से हर रोज़,
जैसे रातों-रात फसल उगाता हो हमारे लिए |
वो फल बहुत ही मीठे थे - सबसे मीठे ;
तेरे साथ जो बांटे-खाए, ऐ दोस्त |
आज उसके तने से टिक कर बोला मैं -
" एक फल खिला दे, यार दरख़्त |
दोस्त तो नही हैं आज,
पीछे छूट गए कहीं |
तो तू ही एक फल खिला दे, यार दरख़्त |
तेरे फलों से रसीला कोई फल नही
लदा रहता था,
टोकरी भर - भर देता था हर रोज़,
आज बस एक ही खिला दे, यार दरख़्त |
तू मेरी क्यूँ नही सुनता |"
"क्या टटोल रहे हो, साहब"
पीछे एक नौजवान बोला,
"किसी काम का नही साहब;
बाँझ है ये बाँझ |
ये पेड़ नही फलता |"
सिहर उठा मैं,
काँपते हुए पैर खुद ही चल पड़े |
ड्राईवर से कहा मैंने -
"जल्दी चलो, मैं लेट हो रहा हूँ|"
bahut khoob....vakai vo bachpan ki yaade, vo gaanv ki dhool, bageeche ke amrood...sach,kabhi-kabhi lagta hai hum bade kyon ho jate hain, kyon duniya ke tane-bano main fas jate hain....kitna achcha hota agar hum bachpan ko saath leker chal pate aur yaado ko mahez ek naam hi de pate..
ReplyDeleteHer baar ki tareh ek-ek line dil ko chooti hai, bahut khoob, likhne ka ye andaaj aur najariya yoon hi banaye rakhna.....god bless you.....
Thanks di...all ur blessings..!!
Deleteaur wo bageechay ke amrood ki to baat hi alag hai :)
Ateev sundar!
ReplyDeleteevery time i read ur creations...i fall in luv wid u all over again..:)
ReplyDeletekeep writing...:))